श्रद्धा थवाईत को २०१६ में उनकी कहानी संग्रह ‘हवा में फड़फड़ाती चिठ्ठी‘ के लिए भारतीय ज्ञानपीठ नवलेखन पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। श्रद्धा एक नए समय की नयी आवाज़ है। उनकी कहानियाँ अक्सर नया ज्ञानोदय ,परिकथा सहित कुछ अन्य पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं.
श्रद्धा आप अपने बारे में कुछ बताए– आपका जन्म कहाँ हुआ, आपका बचपन कैसा था?
मेरा जन्म सारंगढ़, म.प्र. में हुआ, बचपन जांजगीर में बीता। धूल-मिट्टी में खेलते, पेड़ों में चढ़ते उतरते, पौधों के साथ बढ़ते हुए, मम्मी-पापा, भाई- बहन के सुखद सानिध्य में यद्यपि स्वास्थ्य संबंधी बहुत सी परेशानियां रहीं लेकिन कुल मिला कर बचपन का जो चित्र मन में बनता है वो बहुत सुखद है। यूं भी मैं बहुत सीधी-सादी बच्ची रही।
लिखने- पढ़ने का शौक कैसे हुआ?
बचपन से पढ़ने के लिए खूब पत्रिकाएं मिली। नंदन चम्पक, बालहंस, बाल भारती, अनुदित रूसी लोक कथाएं। जब पढ़ नही सकती थी तो सुनती थी,फिर जब पढ़ना आ गया फिर सुबह उठते ही पढ़ने के लिए, खाते हुए पढ़ने के लिए खूब डांट खाई। बड़े होने पे किताबों की जब जैसी उपलब्धता रही थोड़ा बहुत पढ़ती रही। बीच मे कैरियर बनाने की धुन में पढ़ना कम हो गया था जो अब फिर अपनी गति में आ गया है।
लिखने की बात करूँ तो पहली कविता लिखी थी तब शायद छठवीं में रही होंगी। देशभक्ति की कविताएं थी। दो- चार कविताएं ही लिखी होंगी फिर एकाध बार छोड़ कर कुछ नहीं लिखा। 2011-12 में समंदर सा अगाध समय मिला, जिसमें कितना ही तैरते रहो खत्म ही नहीं होता था। तब डायरी सा कुछ लिखना शुरू किया था।
आपकी पहली कहानी कौन सी थी?
मेरी पहली कहानी ‘हवा में फड़फड़ाती चिट्ठी’ थी, जिसे प्रभात प्रकाशन द्वारा आयोजित युवा हिंदी कहानीकार प्रतियोगिता 2015 में प्रथम पुरस्कार प्राप्त हुआ था और यह साहित्य अमृत के दिसंबर 15 अंक के प्रकाशित हुई थी।
आपको इंस्पिरेशन कहाँ से मिलता है?
इसी दुनिया से, इसी जिंदगी से। इस जिंदगी में आई दूसरी जिंदगियों के रंगों के छीटों से भी। ये छीटें खुशनुमा भी होते हैं तो दुख भरे भी। ऐसी कोई घटना, कोई दृश्य, कोई विचार भी कहानी लिखने के लिए प्रेरित करता है जो मन को आलोड़ित कर ले। जिसके बारे में दुनिया से मन कुछ कहना चाहे।
अपनी पहली कहानी संग्रह के बारे में बताएं
मेरा पहला कहानी संग्रह मेरी पहली प्रकाशित कहानी के नाम पर ही है- ‘ हवा में फड़फड़ाती चिट्ठी’ जो भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित है। इस कहानी संग्रह को 2016 का बारहवाँ ज्ञानपीठ नवलेखन पुरस्कार प्राप्त हुआ था। इस संग्रह में सात कहानियाँ हैं, जो चिकित्सा व्यवस्था, भ्रष्टाचार, अंधविश्वास, साम्प्रदायिक सद्भाव जैसे अलग-अलग विषयों पर हैं।
इन सब से आपकी मनपसंद कहानी कौन सी है और क्यों ?
मुझे मेरी अधिकांश कहानियाँ पसंद हैं। इन कहानियों की पसंदगी के कारण अलग अलग हैं। जैसे हवा में फड़फड़ाती चिट्ठी का संदेश और उसके शुरुवाती दृश्य अच्छे लगते हैं, तो हल्की सी रेखा में जंगल का चित्रण अच्छा लगता है, सपनों की मटमैली हकीकत दिल के करीब है तो मुक्ति और भय में आया घोंघे का बिम्ब बहुत पसंद है। पगडंडी में उतरी लोक परंपरा और फूलों का संघर्ष उसकी जीवटता पसंद है। कोई एक पसंदीदा कहानी बताना मेरे लिए संभव नहीं है।
आपका मनपसंद लेखक या लेखिका कौन है और फवौरिट किताब ?
कहानी की तरह ही कोई एक मनपसंद लेखक नहीं हैं। बहुत से लेखक पसंद हैं जैसे राहुल सांकृत्यायन , प्रेमचंद, अज्ञेय, फणीश्वर नाथ रेणु , जिम कॉर्बेट, जेम्स हैरियट, शिवानी, आदि और भी बहुत से । यहां नाम ही लिखाते चले जायेंगे।
बहुत सी फेवरिट किताबें हैं। यहाँ मैं कुछ पसंदीदा पुस्तकों के नाम बताती हूँ- मृत्युंजय शिवाजी सामंत, परती परिकथा- फणीश्वर नाथ रेणु, कसप- मनोहर श्याम जोशी, कृष्णकली-शिवानी, कुमायूं के क्रूर शेर- जिम कॉर्बेट, रुद्रप्रयाग का आदमखोर बाघ-जिम कॉर्बेट, वोल्गा से गंगा- राहुल सांकृत्यायन, आनंद मठ- बंकिमचंद्र, सत्य के प्रयोग- महात्मा गांधी और भी बहुत सी पुस्तकें हैं जो बहुत पसंद हैं।
हिंदी को अक्सर बहुत मुश्किल भाषा समझा जाता है। स्कूल और कॉलेज भी बच्चों को अंग्रेजी पढ़ने के लिए ज़ोर देते हैं . आपकी क्या राय है इस पर?
हिंदी तो हमारी मातृभाषा है और मातृभाषा कभी कठिन नही होती। जरूरत बस पढ़ने और पढ़ाने की है, जो अभी नहीं हो पा रहा है। आज के प्रतिस्पर्धी युग मे अंग्रेजी सफलता की भाषा है, क्योंकि बहुत से क्षेत्रों में ज्ञान और संवाद के लिए यह जरूरी है। अंग्रेजी पढ़ना जरूरी है लेकिन हिंदी की कीमत पर नहीं। अंग्रेजी पढ़ाइये लेकिन हिंदी को दोयम दर्जे का बना कर नहीं। बहुत से लोग देखे हैं, जिनकी आवाज में यह कहते हुए गर्व छलकता है कि मेरे बेटे/बेटी को तो हिंदी बहुत कठिन लगती है, उसे समझ नहीं आती, बस इंग्लिश पढ़ा लो उसे। समस्या इस सोच में है। यह सोच माँ-बाप में भी है और शिक्षकों में भी। दूसरी समस्या है कि बच्चों को पढ़ने के लिये पुस्तकें नहीं दी जाती। पुस्तकें प्राथमिकता में नहीं आती। लोग बच्चों के लिए कुछ लेकर जाना हो तो क्या ले जाते हैं- चॉकलेट या कपड़े या फिर खिलौने… बच्चों को पुस्तकें मिलनी चाहिए अंग्रेजी की भी हिंदी की भी। चाहे बच्चा पढ़ना न भी जानता हो तब भी।
आजकल सोशल मीडिया और मार्केटिंग का ज़माना है। ऐसे में नए लेखक अपनी पहचान कैसे बनाएं ?
सोशल मीडिया ने इंतजार खत्म किया है। यह नये लेखकों के लिए अभिव्यक्ति का ऐसा प्लेटफॉर्म है जिसने जो, जितना,जैसा आता है उसे सामने रखने का अवसर दिया है। इस तरह यह शुरुवाती कदमों के लिए बहुत अच्छा है लेकिन इस मे झूठी वाहवाही बहुत है तो खुद का आकलन करते हुए बढ़ने की जरूरत कहीं अधिक है। मार्केटिंग के बारे में मैं कुछ अधिक नही कह सकती।
नए लेखकों में जिसमें में भी शामिल हूँ मानती हूं कि हमेशा अच्छा लिखने की कोशिश करना चाहिए। बाकी यदि रचना में दम है तो वह धीरे धीरे ही सही पर अपनी जगह बनाती है और रचना से ही लेखक की पहचान होती है।