आज मिलिए अर्चना उपाध्याय से. इनका परिचय कुछ शब्दों में करना कठिन है . यह कई हैट्स पहनती हैं और बहुमुखी प्रतिभाओ की धनी हैं. एक उत्कृष्ट डिज़ाइनर होने के साथ क्राफ्ट्स टीचर, पेंटर, और कवि भी है. लिखने और पढ़ने में भी खास रूचि है इनकी. इन्हें कई पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया है और विभिन्न सामाजिक कार्यों से भी जुड़ी हुई हैं.
यह बताती हैं की इन्हें खुद से प्यार चालीस बरस के बाद हुआ. इन्हें लगता है की यह उनके जीवन के सबसे बेहतरीन वर्ष है. वह हर वो कार्य करन चाहती है जो इन्हें प्रिय हैं. वह कहती हैं, “ज़िन्दगी थोड़ी देर से शुरू की परन्तु अब किसी रह पर चल रही हूँ’. इसी नयी राह पर चलते हुए, इन्होने कुछ महीने पहले अपना यूट्यूब चैनल स्टार्ट किया है जिसमें यह अपनी मीठी और मधुर आवाज़ में हिंदी किताबों की समीक्षा करती है. शायद समीक्षा शब्द कहना सही न हो। यह कहना उचित रहेगा की यह आपको क़िताबों की दुनिया के ऐसे रोमांचक सफर में ले जाती हैं जहाँ से वापस आना शायद कठिन लगता है. ऐसा लगता है की आप उस दुनिया में ही कहीं खो जाएँ और वापस कभी न आएं. मुझे तो बिलकुल ऐसा ही लगता है. 🙂
आज हम इनसे इनके इस यूट्यूब चैनल और किताबों के बारे में बात करेंगे.
1. अपने बारे में हमें कुछ बताए। आपकी पढ़ने -लिखने में रूचि कैसे हुई?
शिप्रा,सबसे पहले तो प्यार भरा थैंक्स, कि तुमने मुझे अपने इस खूबसूरत सफर में जोड़ा..
मैं टेक्सटाइल मिनिस्ट्री में empanelled designer हूँ, और साथ ही अपनी घर -गृहस्थी को संभालते हुए लिखने-पढ़ने का और especially अच्छा पढ़ते रहने का बहुत शौक रखती हूं, अपने देश के बड़े साहित्यिक और सांस्कृतिक ग्रुप ‘आगमन..एक खूबसूरत शुरुआत’ का भी वर्षों से हिस्सा हूँ।साथ ही निजी तौर पर समाजसेवा से जुड़ कर स्वच्छता और शिक्षा पर काम करती हूं।और जैसा कि हमारे परिचय का आधार,मेरा हिंदी किताबों पर यू ट्यूब चैनल की शुरआत करना,जो मुझे मानसिक सुकून देता है।
शिप्रा मैंने जिंदगी को बहुत करीब से समझा है लेकिन कभी किसी भी परिस्थिति में हिम्मत का साथ नही छोड़ती और हमेशा दिमाग से ज्यादा दिल की सुनती हूं। शायद यही वजह है कि जिंदगी को बहुत प्यार करती हूं।
जिस दौर में हमारा बचपन गुजरा,न मोबाइल फोन थे न टीवी देखने की आदत,किताबें और खेल यही दो रास्ते थे खाली समय के और तब तो स्कूल का भी कोई प्रेशर नही था,इन दो options में मैं खेल-कूद से तो हमेशा भागी लेकिन किताबों से प्यार करने लगी।और उसका श्रेय मेरे पापा-मम्मी को जाता है क्योंकि दोनों ही साहित्य पढ़ने में धनी थे,ऐसे में मेरे पास भी चंपक,पराग,बाल हंस,चंदा मामा, नन्हे सम्राट,चाचा चौधरी,बिल्लू-पिंकी,न जाने कितनी और किताबों का संग्रह हो गया था,
और उसमें भी चार चांद लगा देती थीं पापा की खास मौकों पर गिफ्ट की हुई अमरचित्र कथाएं,और प्रेरणा दायी किताबें…थर्ड क्लास में फर्स्ट आने पर पापा की दी हुई एक किताब’सुनो कहानी बिटिया रानी’आज भी मेरे घर में सजी है और दिल के करीब है।
तो राजन-इकबाल के राजन को पसन्द करते और परवरिश में मिले किताबों के प्यार के साथ जिंदगी कब रच बस गई, पता ही नही
2. किताबों की समीक्षा करने का शौक कब से हुआ?
समय के बदलाव के साथ फेसबुक,वाटस एप,यू ट्यूब सभी अपना प्रभाव समाज के साथ मन पर भी जमा रहे थे,हर सवाल का जवाब एक क्लिक पर तैयार मिलता था,पर चैनल्स की भीड़ में कुछ अपनी सोच जैसा,सुकून देने वाला उतना नही दिखा,जो एक गम्भीर वर्ग की तलाश पूरी करता,न ही हिंदी के प्रति वो लगाव और सम्मान नजर आता,ऐसे में किताबों के प्रति मेरा प्यार देख कर मेरे बेटे और पति ने मुझे बहुत प्रेरित किया,और उनके साथ से मैं आज यहाँ हूँ।और मन की एक शुरुआत ने Antara.. The bookshelf को सजा दिया।
आप इनका यूट्यूब चैनल यहाँ देख सकते हैं.
3. समीक्षा से पहले करीबन कितनी बार किताब को पढ़ती हैं?
समीक्षा से पहले मैं पढ़ी हुई किताब को भी दुबारा गहराई से पढ़ती हूं, और जब समीक्षा करती हूं तो मैं सिर्फ किताब को महसूस करती हूं ,और उस वक्त जो भाव मन मे आते हैं, बिना किसी स्क्रिप्ट के कहती चली जाती हूं।क्योंकि मेरे लिये दरअसल वो सिर्फ किताब नही समाज की एक भावना होती है ,जो मुझे भी छूती है।
4. समीक्षा करते समय आप लेखक के पर्सपेक्टिव से सोचती हैं या पढ़ने वाले के नज़रिये से?
बिल्कुल! मैं लेखक के पर्सपेक्टिव से सोचती समझती जरूर हूं, लेकिन पढ़ने वाले का नजरिया मुझे ज्यादा अपील करता है,क्योंकि लेखक अपने मन से तय की गई या खुद की जी गई भावनाओ को उकेरता है पर पाठक बिल्कुल कोरे और नए नजरिये से किताब को देखता है। जो शायद एक लेखक भी अपनी लेखनी में नही देख पाता।
5. जब किताब की समीक्षा करती हैं तो क्या लेखक की ज़िन्दगी को भी समझने की कोशिश होती है या उसे अलग रखती हैं?
हां शिप्रा,लेखक की जिंदगी या कहिए उसके नजरिये को समझने की कोशिश करती हूं, पर उससे परे दो नजरिये और महसूस कर पाती हूँ एक लेखक की पुस्तक के आधार पर पाठक का नजरिया और एक वो जो पुस्तक पढ़ने के बाद मैं महसूस करती हूं.. स्वयं का निजी भाव और विश्लेषण..और तीनों को ही अपने -अपने स्तर पर कभी अलग तो कभी जुड़ा पाती हूँ।
6. आपके लिए एक अच्छी किताब और एक बुरी किताब क्या होती है?
सच कहूं शिप्रा तो मेरे लिये किताब कभी अच्छे या बुरे की श्रेणी में ही नही आती,क्योंकि मेरा मानना है कि किताब भावना पर लिखी जाती है फिर वो चाहे खुद जी गई हो,सामाजिक हो या कल्पना।
और भावनाएं जिंदगी से जुड़ी होती हैं ,जो कुछ न कुछ समझाती, सिखाती जरूर हैं।एक पुस्तक प्रायः एक लेखक के मन की आवाज होती है,नितांत निजी भले ही वो सत्य घटना,सामाजिक या कैसे भी विषय पर आधारित हो,और मन तो मन है वो भी साहित्यिक.. अच्छा-बुरा कैसा,पर हां जिन किताबों में स्त्री का सम्मान नही झलकता वो कहीं भीतर कचोटती भी हैं मुझे।
ये सवाल थोड़ा मुश्किल है,क्योंकि सालों से पढ़ते रहने के बावजूद बहुत अधूरापन लगता है कि कितना कुछ पढ़ना है अभी जिसका ratio पढ़े जाने की तुलना में बहुत ज्यादा है,ऐसे में सिर्फ अपनी पढ़ी किताबों पर आकलन करना मुझे उचित नही लगता.
7. क्या कोई ऐसी किताब है जो है तो बहुत बढ़िया, पर किताबों की भीड़ में कहीं खो गयी है?
सच तो ये है शिप्रा कहीं कुछ गुम नही होता बस दौर बदलता है,कभी प्रेमचंद,कभी मन्नू भंडारी,कभी चेतन भगत..बस नाम बदलते हैं और पाठक की पसन्द का दृष्टिकोण,लेकिन अच्छा साहित्य ,वो किताबें-कहानियां सब वैसे ही सजे रहते हैं वक़्त की अलमारी पर..उठाने वाले हाथ और नजरों का आकर्षण अपनी पहचान बनाता रहता है बस…
8. आप कुछ मैसेज देना चाहती हैं उन महिलाओं से जो मन का करना चाहती हैं, पर किसी कारण कर नहीं पाती?
मैं दुनिया की हर औरत से बस यही बात बांटना चाहती हूं कि जिंदगी में प्यार का पर्याय आप हो,बस शर्त ये है कि सबसे पहले खुद की नजरों में अपना सम्मान हो और दिल मे आत्मविश्वास भरा प्यार रखो अपने लिये…क्योंकि अगर कहीं कुछ अच्छा या बुरा बदलाव हो सकता है तो वो सिर्फ हम ला सकते हैं।
शानदार, शानदार शानदार….. आप दोनों का काम एक से बढ़कर एक।
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इन्होंने प्रत्येक प्रश्न का बड़े ही सहज भाव से दिये जो की पढ़ने पर बुद्धि पर छाप छोड़ गये। विषेश लगा इनकी इंटर व्यू कि अन्तिम लाईनें जिसमें स्त्री को बहुत सुंदर सुझाव दिए।
मैं इनके उत्तम सफल भविष्य की करता हूं।
धन्यवाद
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इस इन्टरव्यू से बहुत कुछ जानने को मिला मैम
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बहुत ही सुन्दर
इस इन्टरव्यू से बहुत कुछ जानने को मिला मैम
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