उपासना एक लेखिका होने के साथ पेंटर और टीचर भी हैं. उन्हें २०१४ में ‘एक ज़िन्दगी एक स्क्रिप्टभर’ कहानी संग्रह के लिए भारतीय ज्ञानपीठ से नवलेखन पुरस्कार से सम्मानित किया गया है. वैसे तो वो बलिया की रहने वाली हैं, पर अब राजस्थान के चमकीले आकाश के नीचे कहानियां लिखती हैं.
अपने बारे में हमें कुछ बताएं? आपकी लेखन में रूचि कैसे हुई?
मेरा जन्म और शिक्षा चित्तरंजन (पश्चिम बंगाल) में हुई. पिता रेलवे में कार्यरत थे. एक कस्बाई माहौल था. जहाँ देश के विभिन्न हिस्सों से आए विविध संस्कृतियों के लोग थे. बंगाल के उस छोटे शहर का माहौल जहाँ विविध भाषाएँ थीं, संस्कृतियाँ थीं… एक पहाड़ी नहीं ‘अजय नदी’ थी जिसके पार झारखण्ड का इलाका था. जंगल, गाँव, शहरी और आदिवासी जीवन… यह सब मिलकर जो परिदृश्य बनता था वह बहुत आकर्षक और रोचक था. उनके बीच बड़े होते हुए कई सुखद अनुभव हुए थे.
यह बताना बड़ा कठिन है लेखन में कि ‘रूचि’ कैसे हुई. यह इतना अमूर्त टर्म है कि स्पष्ट कह पाना थोड़ा मुश्किल लगता है. बचपन मे हमे बाल पत्रिकाएँ नंदन, चंदा मामा वगैरह गर्मी कि छुट्टियों में ही पढ़ने की इज़ाज़त थी. यद्यपि घर का माहौल कभी भी बहुत साहित्यिक नहीं रहा. मेरे पिता को साहित्य पढ़ने में रूचि थी. यह बात मुझे बहुत बाद में पता चली. जब मुझे उनकी एक डायरी मिली जो उर्दू शायरों के परिचय और गज़लों से भरी थी. पहले पहल मीर ,ग़ालिब, ,साहिर, सौदा जैसे शायरों से मेरा परिचय उनकी उसी डायरी से हुआ था. वे उर्दू कविताओं के अधिक नज़दीक थे. शायद मुझमें यह हिंदी के प्रेम स्वरुप उभरा होगा. लेकिन बंगाल के जिस परिवेश में मैं बड़ी हुई थी, उसके प्रति जो कुछ सोचती-महसूस करती थी, शब्द अनायास उन्हें अभिव्यक्त करने का साधन बन गए. हालाँकि मैंने ‘पेन्टिंग’ की बाकायदा दस सालों तक शिक्षा भी ली है. पर रंगों के बनिस्पत शब्दों में अभिव्यक्त करना ज्यादा सहज लगता है मुझे.
आपको क्या लिखना ज्यादा पसंद है?
हिंदी फिक्शन (कहानियाँ)
अपनी लिखी हुई किसी फेवरेट (पसंदीदा) कहानी के बारे में बताएँ.
अपने लेखन में ‘फेवरेट’ जैसी चीज़ तो क्या ही होती है. लेकिन हाँ, कहानियाँ रचते हुए, कुछ कहानियाँ ऐसी होती हैं जिनमें आप आपादमस्तक डूब जाते हैं. एक कहानी का जिक्र मैं यहाँ करना चाहूंगी. मैं मूलतः पूर्वी उत्तर प्रदेश के बलिया जिले से हूँ. पिता के रिटायरमेंट के पश्चात सपरिवार हम अपने गाँव आ गए थे. गाँव आने के बाद ग्रामीण समाज के भीतरी जालों, महिलाओं की वर्तमान स्थिति को मैं बेहतर ढंग से समझ पाई. ‘एगही सजनवा बिन ए राम!’ ऐसी कहानी है जिसे लिखते हुए मैं जिस मनोजगत में जी रही थी, वो मुझे अतिशय प्रिय हैं.
आपको किस तरह की किताबें पढ़ना अच्छा लगता है और क्यों?
फिक्शन और नॉन फिक्शन दोनों, बस जो सामाजिक अनुभवों से प्रत्यक्षतः जुड़ते हों. बाल साहित्य पढ़ना भी अच्छा लगता है.
कौन सी किताब पढ़कर ऐसा लगता है कि काश! आप उसे लिखतीं? और अगर लिखती तो कैसे लिखतीं?
दो किताबें ऐसी हैं जो रचनात्मकता के स्तर पर मुझे भयभीत करती हैं- एक ‘Elfriede Jelinek’ की ‘The Piano Teacher’ और दूसरी शम्सुर्रहमान फ़ारुखी की ‘कई चाँद थे सरे आसमाँ’
इस तरह का कुछ लिख पाने की कोशिश शायद निरंतर रहेगी.
आप अपने किरदारों के नाम कैसे तय करती हैं?
किरदार जो स्मृतियों में हैं, अनुभवों में है, और वह चरित्र जो लेखन में गढ़ा जा रहा है, जो कुछ समानता जैसी दिखती है तो अमूमन नाम वहीं रख लेती हूँ. फाईनल ड्राफ्ट में कई दफ़े बदलना पड़ता है.
क्या आपकी जिन्दगी आपके लेखन में रिफ्लेक्ट होती हैं?
थोड़ी बहुत तो हर लेखक की होती है.
लिटरेचर में महिलाओं का रिप्रेजेंटेशन कैसा है? क्या यह बदल रहा है?
मुझे लगता है कि हिंदी लेखन में महिलाओं का रिप्रेसेंटेशन हमेशा से ही आश्वस्तिदायक रहा है. बड़े ही सशक्त तरीके से हर पीढ़ी में इन्होने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है. वर्तमान समय में अलग-अलग पृष्ठभूमि से आई लेखिकाएँ विविध विषयों पर लिख रही हैं. सारा राय, गीतांजली श्री, प्रत्यक्षा, किरण सिंह, वंदना राग, मनीषा कुलश्रेष्ठ आदि पिछले दो दशकों से सक्रिय लेखिकाएं रही हैं, जिन्होंने साहित्य की हर विधा में अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज कराई है. इनसे पहले की पीढ़ी भी साहित्य में काफ़ी सक्रिय रही थी जैसे मन्नू भंडारी, मृदुला गर्ग, नासिरा शर्मा, चित्र मुद्गल, मैत्रेयी पुष्पा, उषा किरण खान आदि. जिनमें से कुछ आज भी लेखन लेखन कर रही हैं. जब तीन पीढ़ियाँ लेखन में सक्रिय हैं तो कई छूते-अनछूते विषय कहानियों और उपन्यास की शक्ल में हमारे समक्ष उपस्थित होते रहते हैं. सूदूर ग्रामीण अंचल से लेकर महानगर तक. आज जब हमारे चारों ओर का परिदृश्य तेजी से बदलता महसूस होता है तो लेखन में वह प्रतिबिंबित होगा ही… और यह हो भी रहा है.
इन दिनों लेखन में क्या कुछ नया कर रही हैं?
फ़िलहाल अपने दूसरे कहानी संग्रह की पांडुलिपि पर काम कर रही हूँ. एक बाल उपन्यास ‘डेस्क पर लिखे नाम’ नेशनल बुक ट्रस्ट से प्रकाशनाधीन है. जो संभवतः इस वर्ष के अंत तक आ जाए.
Upasana ji ko thoda aur janne ka mauka mila….
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Kapil se Upasana Ji or Navneet ji k bare m suna ,fb pr judkr bahut khushi hui, ru b ru to nh mili abhi tk lekin is tarah mil lena bhi behad achcha laga.
Shukriya
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